ये बरसात क्यों आती है
कहीं खुशियाँ तो कहीं ये
साथ अपने गम भी लाती है।
बरसात में तो नदियाँ गाती हैं
फसलें खिलखिलाती हैं।
मन हर्षित हो जाते हैं किसानों के
अच्छे दिन आ जाते हैं
खेत और खलिहानों के
कहीं अच्छे घरों की छत से
गिरता पानी है , तो कहीं
टूटे-फूटे घरों की छप्पर से
टपकता पानी है।
यही तो वर्षा रानी की
अपनी मनमानी है।
जो होते हैं पास अपने प्रिये के
वे खुश हो जाते हैं
बरसात के खुशनुमा मौसम का
आनंद भी उठाते हैं।
पर उनका क्या जो होते हैं
दूर प्रिये से वे तो
उन्हें याद करके ग़मों में
डूब जाते हैं।
प्रिये-मिलन की आस में
अपना समय गवांते हैं
चाहते हैं किसी की चाहत
फिर भी नहीं पाते हैं।
उफ़ ये बरसात जाने क्यों आती है
साथ अपने ये गम भी लाती है।
© Tukbook
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