तुम मेरे ऊपर जो छाए हो
सर पर मँडराये हो
तेरे विनीत वर्षा से ,
बचना मुझको आता है।
जल की बुँदे हैं तुम्हारे पास ,
मेरे पास छाता है।
अहम् का है वहम तुझे है व्यर्थ की अकड़
चाहे तू गर-गर गरज
चाहे तू टप-टप बरस
इसी मोड़ पर खड़े हैं
हम जाएंगे न घर
इंतजार करते साँझ हुआ
उससे यहीं मिलना है ,
बरस लो चाहे कितना भी
पर इंच भर न हिलना है
उस व्यक्ति की प्रतीक्षा
करूँगा रात भर
चाहे तू गर-गर गरज
चाहे तू टप-टप बरस
इसी मोड़ पर खड़े हैं
हम जाएंगे न घर
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