बखोटन भाग -5

बखोटन नींद से जगा, सर में हल्का दर्द था।  ऐसा लग रहा था की दुनिया

हिल रही है उसने सोचा की की कल रात के मदिरा का असर है , उसने

बिस्तर से उठने की कोशिश की तो पाया की उसके हाथ बंधे हुए हैं।


उसने भौंचिआए आँखों से चारो तरफ देखने की कोशिश की , पता चला की

वो एक कैदी वाहन में है वही पास में लगे एक तख्त पर रेशमी  वस्त्र पहने

एक नौजवान बैठा था। 

उसने पूछा, तो तुम हीं बखोटन हो ?


हाँ ! और तुम कौन हो, मैं कहाँ हूँ और यहाँ हो क्या रहा है?   -  बखोटन ने

पूछा 


मैं विकट सिंह पाल , तुम मेरे रौशनगढ में हो और तुम्हे कारागृह ले जाया जा

रहा है। 


क्या ! तुम्हारा रौशनगढ ? - बखोटन ने पूछा 


विकट सिंह पाल ने कहा -

वैसे तो इस जगह का नाम अब “मध्य भीष्मपुर” है , किन्तु तुम तो कल रात

से मदिरा पि कर पड़े हुए हो तो तुम्हे पुराना नाम ही याद होगा। 


मेरे बड़े भाई हमारे महाराज बड़े हीं सिद्धांतवादी राजा थे। कहते थे , रात्रि में

हमला करना कायरो का काम है और तुमने कल रात्रि उनका सर धर से

अलग कर दिया।  मैंने ठान लिया की तुझे मृत्यु तो मैं हीं दूंगा। 


तभी उसके अगले हीं क्षण मंत्रियो ने मुझे राजा घोषित कर दिया। 

मुझे लगा भाई ये तो सही है। और ऊपर से मुझे रात्रि में हमला करने के लिए

बड़े भाई से आज्ञा लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी। 


तुम्हारा सेनापति भाग गया , तुम्हारा राजा मारा गया …….. वगैरह - वगैरह

तो मैंने सोचा की तुमसे मुलाकात कर लूँ। 

और मैं दो राज्यों का राजा हो गया और तुम मध्य भीष्मपुर के निवासी।


बखोटन बोला -

लेकिन ये जगह तो भीष्मपुर से पूर्वी दिशा में है , तुम - तुमने  गढांग राज्य पर

भी कब्ज़ा कर लिया ?


विकट सिंह ने कहा -

नहीं अब तक तो नहीं , तुम्हे कोई आपत्ति ? होगी भी तो तुम्हारी स्थिति नही

है आपत्ति दर्ज कराने की। 


बखोटन ने कहा -

नही मुझे क्या आपत्ति होगी ,

मेरी कौन सी माँ कौन सी गढांग राज्य  की सेनापति है। 



तभी कैदगाड़ी के दरवाजे के फांक से रिसती हुई रौशनी की किरणें आनी

बंद हो गयी।  गाड़ी कारागृह में पहुँच गयी थी , बखोटन को कारागृह में

कैद कर दिया गया।

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