ख़्वाबों की महबूब
उनकी जुल्फ़ें जैसे मेघों की टोली
जहां मन हो बस वहीं उमड़ जाए
उनका गजरा जैसे इत्र की डिबिया
गंधर्वो को भी मोहित कर जाए।
उनके नयन जैसे गहरी झील कोई
मंझे खेवैया भी निकल ना पाएँ
उनके पलक जैसे पर्दा हो सूर्य का
खुले जब ये , अंजोरा हो जाए।
उनकी बिंदी जैसे आकाशी घटना
मोहब्बत की इन्द्रधनुष बिखराए
होठ जैसे चंपा में कोई लाल गुलाब
देख जिसे भौंरे मंडराए।
उनकी नाक जैसे तरासी हुई कोई पत्थर
नथुनी से अठखेलियां करवाए
कान में उनके झूलता वो झुमका
लटकते चांद का एहसास दिलाए।
उनकी बोली जैसे बिखरी शराब की बोतल
सुन के हम मदहोश हो ।
चलें जब वो अपनी लचकाती कमर
जमीं भी देख उन्हें इठलाए।।
© Tukbook
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