वजूद
बचपन दम तोड़ती रही दहलीज पे आके मेरे
कोई कसर ना छोड़ी मुझको मनाने में
मै बावरा समझ ना पाया फरेब इस दुनियाँ का
मै तो लगा रहा किस्मत चमकाने में
मेरे गांव की अब भी बुला रही है वो पीपल
बाकी सब पेड़ तो कटवा दी मकान बनाने में
बाँहें फैलाए जहाँ रहते थे मोहब्बत वाले
छूट गए रिश्ते सब पैसे कमाने में
इक इक करके हो गई सबकी रुखसती
मै बचा हूं बस इस उजड़े फसाने में
गुमनामी में खोज रहा मंजिल मै अपनी अब
क्या यूं ही रह जाऊंगा सीलन मिटाने में
वो मुंडेर की गौरैया वो अमिया के तोते बिसरे
यहां लोग तो है पर बाग सारे हैं बिराने में
ये इमारतें ये घर ये बालकनी ऊंची
आता है इन्हें बस कमाई जताने में
फकत छूटा नहीं वो गांव की गलियां
आया ही क्यू मैं ये दौलत दिखाने में
ख्वाहिशें नहीं बस जरूरत पूरी हुई
करे कोई तो मदद वो मोहब्ब्त दिलाने में
करी लाख जतन ,हजारों टोटका मैंने
काम आईं ना वो वक़्त बुलाने में
घूट रहा यूं दम , वजूद से दूर हूं मै
इक आखिरी कोशिश होगी वो दिन लौटाने में।।
© Tukbook
Awesome,no words ,it's feel
जवाब देंहटाएंAwesome,it's feel
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