कशिश नज़्म के लहजे से

कशिश नज़्म के लहजे से

Tukbook

आफताब को आगोश में लिए 
किसी शम्स की तरह 
वो जाने क्यू वो उस 
आइने पे ज़ुल्म ढ़ा रही है

जैसे कोई जन्नत की नुर 
गुलाबो के अब्शार से नहाई हुई 
जिसकी अराईश खुद हुरो ने करी हो 
और पास आके 
हमें जुल्फों के अब्र से दिल चुरा ले जाए

 उनकी इन अदाओं को देखकर 
कोई भी अदावत तक भूल जाए 
तो मुझे तो अपना अक्श भी याद ना रहा

उनके अंजुमन में अज़ीज़ भी बदहवास हो गए 
मानो उनके चश्म ने जन्नत का दीदार कर लिया हो
 यूं ही मैने कलम ना उठाई थी
फकत फना होके फिटना छोड़ फसाहत शुरू की मैंने

फिजा तो जैसे घाफिल हुई पड़ी थी 
मानो गुलिस्ता खुद उनसे गुफ्तगू करने आई हो
 हकीकत कहूं तो हर इक  हर्फ की हसरत ये है कि 
वो उनके तारीफ को लिखा जाए 
 इजाजत लेके इब्दीता करा तो मैंने पर इकरार नहीं 
इनकार कर दिया, हमारी इंतेहा का इंतकाल हो गया

इत्तेफ़ाक़ तो देखो यारो मेरी इस्मत मोहब्ब्त 
तुम जान ए  फिज़ा इक एहसास दिलाती थी मुझे 
जुस्तजू आज भी है इसे यारो की अपना खालिक 
किसी खम पर इसको कामिल करेगा

आरज़ू ये है कि मै इस्तकबाल करूँ उनके 
लन- तारनी लबों का जिनके लहजे में ही लिहाज हो
इंतजार है कि जब वो मश रिक से आए इस मर्तबा 
तो मंजूरी मिले ना मिले मिस्ल ए गुफ्तगू करूंगा

मुद्दत बाद ये बयां करूंगा कि इस मुअज्जम को 
मिस्मार तूने ही किया है, जाता मुहस्बा करके 
देखो मुझे  मुहाजिर बना दिया
मुनव्वर था अपने अपने मुस्तकबिल पर नाज था मुझे , 
अब ये नदमत शक्स नगमा भूल नगेमान में पड़ा है

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