महीने बारह साल के

महीने बारह साल के

Tukbook. wooden house near pine trees and pond coated with snow during daytime

माघ की वो ठिठुरती ठंड
सिमटे हुए हमारे अंग-अंग 
ओस और धुंध का वो साया
पास रहके भी नजर ना आया। 

फाल्गुन का चढ़ता रंग
वो ठिठोली भौजी के संग
अमिया के बागों में पत्तो का आना
होत सबेरे कोयल की कूहुक
मनवा जाए वहीँ पर रुक। 
  
चैत में मंजर का आना
खेतो में तब होत कटाई
खलिहानों में झींगुर का गान
गर्मी के लिए बना सुराही
गई बसंत तब तुम जान। 

भरे अनाज जब बैशाख में
गांव जब लोहड़ी पर नाचे
क्या बूढ़ा, बच्चा क्या जवान
प्रेम-रस जब लगे है सांचे
आवन लगे ज्येष्ठ महीना
तपती गरमी हमको है जांचे। 

आने लगी मेघ की टोली
छाओ अपने अपने छप्पर
जामुन, आम मिलेंगे कटहल
इंद्र देव बरसेंगे जल बन
खेतो में शुरू फिर धान रोपाई
सारा दिन खेतो में भाई। 

लो आया सावन झूम झूम
हुई हरी-हरी सी ये धरती 
भरे झील भर गई तालाब
चली नहर गंगा की ओर
हुए मग्न कभी बेबस फिर तो
देख घटा काली घनघोर। 

फिर भादो कहाँ है शरमाई
थी बरखी हर नक्षत्र में वो
नदिया फिर लगी उफान मारने
जैसे ही लगी हो उनमें होड़ 
कमर तक पानी खेतो में अब
मेड़ों पर मेंढ़क करते शोर। 

आश्विन-कार्तिक खूब इठलाते
थोड़ी खुनकी थोड़ी नरम 
नए कपड़ों नए फसल का बेला
त्योहारों का मौसम  अलबेला। 

फिर आए महीना पुस का
जोड़ों की ठंडी लगे हमें
फिर इंतजार हो सूरज का
सब जिसमें जाके ही रमें। 

© Tukbook

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