हो ऐसी मेरी महबूबा

हो ऐसी मेरी महबूबा

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जो सुबह अपनी झप्पी से 
बिस्तर से मुझको उठाए
उठ कर के देखूं उसे सबसे पहले
सारा दिन मेरा अच्छे से जाए

बड़ी सी प्याली चाय या कॉफी
इक कप में दोनों  काम चलाए
लब उसके करे काम चीनी का
छूकर होंठ उसकी प्याला भी इतराए

बच्चों सी करे मुझे तैयार
बाल सवाँरे मेरे वो बटन लगाए
अंत में चीनी और शक्कर
फिर ऑफिस का टिफिन पकड़ाए

हर घंटे पे फोन की घंटी
कैसे हो जी .....क्या खाना खाएं
कह दूँ जो। ... होगी थोड़ी देर
जम के फिर वो डाँट लगाए 

खड़ी मिले वो दरवाजे पर
जब लौट हम ऑफिस से आए
दिन भर का तब ब्योरा पूछे
फिर कोमल हाथों से खाना खिलाये। 

मीठी मीठी बातें हो उसकी 
घर में अमृत घुल जाए
सूरत देखूँ सवांरूँ जुल्फों को 
प्रेम भी देख कर इठलाए। 

हो राधा कृष्ण सी जोड़ी अपनी
देवों सा फिर हम प्यार लुटायें  
हो ऐसी मेरी महबूबा
दो मिलकर हम इक हो जाए। 
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