मन की व्यथा

मन की व्यथा

a person cries

अभी अभी तो नींद आयी
   यूं ख्वाबों से जगाए कौन
आहटे तो सुनाई भी ना दी
   यूं मुझको फिर उठाए कौन। 

अभी खुद की व्यथा से उलझा हु
  यूं सच से आंखे मिलाए कौन
रहने दो अनकही ख़यालो में ही
   यूं फरेब से पर्दे हटाए कौन। 

मसक रही हर रोज दीवारें
  टूटे दरेखो पे पत्थर लगाए कौन
यहां खुद की अस्मत लूटे जा रही
  सारे जहां की इज्जत बचाए कौन। 

ख्वाहिशें ठिठुर कर मरी जा रही 
   तुम्हारी सपनों पर चादर ओढ़ाए कौन
मै थक गया हूं इस अनकही सफर में 
  हर मोड़ पर आशियाना बनाए कौन। 

नफरतें फैल गई है अब चारो तरफ
  इन जलिमो को मोहब्बत सिखाए कौन
हर इक रिश्ता दम तोड़ती जा रही
  अब मोहब्ब्त के रिश्ते निभाए कौन। 

बची हुई जींदगी से प्यार तो है मुझे
 पर सबसे ये बात जताएं कौन।।

© Tukbook

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