बेमेल राग मोहब्बत की

बेमेल राग मोहब्बत की

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किसी ने कहा है लिखो चार अक्षर 
मोहब्बत को पाके तूने क्या है जानी
ये रूह से प्रेम भी क्या सीखा है तुमने
या तेरी भी औरो की जैसी कहानी। 

कहा से शुरू मैं करूँ तारीफ उनकी
मीरा के बोल या किताबी ग़ज़ल है
पुष्पों की बगिया में चमेली के जैसी
या बारह बरस की वो  ब्रह्म कमल है। 

होठ उनके तोता से शहद सा  है टपके
बोली लगे जैसे हो फगुआ की कोयल
वो आंखो का मिचना नशीली अदाएं
करे घात सबसे , लगाए जब काजल। 

वो बालों के लट का गालो पर आना
जैसे कि कोई खजाने पे पहरा
मुस्कान पे तेरे वो डिम्पल जो आए
देखते ही मुझे था घाव हुआ गहरा। 

वो नाकों की नथुनी वो कान का झुमका
वो छोटी सी बिंदी वो पीला दुपट्टा
सूरत तुम्हारी जैसे परी लोक से आई
हार गए फिर हम खुद का ही सट्टा। 

बदन जैसा की हो इत्र से नहाई
खुशबू से मदहोश होते है सारे
पैरो मै तेरे वो काला धागा
जन्नत सी होती है तब के नजारे। 

पाजेब की तेरी नक्काशी है ऐसी
जो जौहरी को अब तक समझ ना है आया
दीवाना तेरा हूं मुझे ना पता कुछ
परिलोक से तुमको किसने है लाया।।।
© Tukbook

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