धुंधली यादों में वो जाम

खाली बैठा हूँ तो खयाल आया
वो अब भी यादों में आते क्यूँ हैं
मिटा दिया मैंने अपनी वजूद तक
अब आके फिर रुलाते क्यूँ हैं?
वो शाम वो हसीं वो मंजर मोहब्बत
धुंधली यादों में वो जाम
सारे जतन कर लिए ए खुदा मैंने
फिर भी वे अब सताते क्यूँ हैं?
वो झुमके जो सबसे ख़ूबसूरत थे
जिसे देख चांद तक शरमा जाए
उतार फेंक दे वो पाजेब भी दिए हुए
गली से गुजरे तो खनकाते क्यूँ हैं?
लचकती कमर जैसे नशे में हो
कायनात पीछे लगे जब निकलती थी
अब तो फना होने वाला भी ना है कोई
फिर खुद पर इतना इठलाते क्यूँ है?
मुझसे वो थी मैं उस से था
अब जाने कहाँ दफन हुई इश्क़ मेरी
जब कुछ रहा हीं नहीं
फिर आंसू बहाते क्यूँ हैं?
यूं ही मोहब्ब्त बदनाम ना हुई
बेवफ़ा लोगों ने है भरोसा तोड़ा
फिर मेरे जैसे आशिक़ अब भी
इश्क़ का पाठ पढ़ाते क्यूँ है?
© Tukbook
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