मैं अब कैसा लगता हूँ

मैं अब कैसा लगता हूँ 

 Tukbook

 मैं कुछ खफा लगता हूँ
एक तमाशा लगता हूँ
आईनों को ज़ंग लगा
अब मैं कैसा लगता हूँ?

अब मैं कोई शख़्स नहीं
उस का साया लगता हूँ
सारे रिश्ते पैसे का है
क्या मैं पूँजीपति लगता हूँ। 

उस से गले मिल कर ख़ुद को
मैं तनहा तनहा लगता हूँ
ख़ुद को मैं सब आँखों में
धुँदला धुँदला लगता हूँ। 

हर लम्हा इस दुनिया से
मैं जाने वाला लगता हूँ
क्या करूँ ...? हर वक़्त
मै सूना-सूना लगता हूँ। 

दिल का हाल क्या है मेरा
टूटा फूटा लगता हूँ
क्या तुम को इस हाल में भी
मैं इस दुनिया का लगता हूँ। 

बहुत दिन से रोगी हूँ, 
और लोगों की नजरों में
शहर-ए-मसीहा लगता हूँ। 

मै समंदर से मिलना चाहता हूँ 
सच-मुच प्यासा प्यासा लगता हूँ। 

मुझ से कमा लो कुछ पैसे
मैं ज़िंदा मुर्दा लगता हूँ
मैंने सहे हैं गुनाह अपने
मैं अब बेचारा सा लगता हूँ.... 
अल्फाज़-ऐ-एज़ाज़ 
© Tukbook

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