और आज के दिन बखोटन और उसकी टोली युद्ध लड़ने गयी हुई थी।
शत्रु दलनायक और बखोटन दोनों आमने-सामने थे और एक दूसरे का
चक्कर लगा रहे थे , शत्रु दलनायक अपने दोनों तलवारो को आपस में
रगड़ कर चिंगारी निकलते हुए बखोटन पर हमला करने हीं वाला होता है,
रुको - बखोटन ने कहा
शत्रु दलनायक रुक जाता है।
बखोटन फिर बोला " यार बड़ा मजेदार चिंगारी निकल रहे हो ,
जरा फिर से करना।
शत्रु दलनायक गुस्से में दोनों तलवारो से हमला करता है ,
बखोटन हमले को रोकता है और लड़ाई शुरू हो जाती है।
लड़ते हुए बखोटन शत्रु दल दलनायक से बोलता है ,
तुम्हे पता है किससे लड़ रहे हो , सेनापति पद के सबसे बड़े दावेदार से।
तभी दोनों एक गड्ढे में गिर जाते हैं और लड़ाई गड्ढे में भी चलती रहती है।
बखोटन लड़ते हुए आगे बोलता है ,
सेनापति हमारा एक नंबर का निठल्ला है ,अरे भाई सेनापति बने हो
तो सेना के साथ मिलकर युद्ध करो।
लेकिन नहीं , हम यहाँ लड़ रहे हैं और वो महल में बैठकर
महाराज को मक्खन लगा रहा है।
और राजा भी बेवकूफ, वो काम नहीं देखता,
कोई मक्खन लगाए तो लगवा भी लेता है।
यकीन मानो मैं सेनापति के पद के सबसे ज्यादा लायक हूँ।
तुम कितने भाग्यशाली हो, तुम्हे मुझसे लड़ने का मौका मिला है।
या कितने अभागे हो, मुझसे मिलने के कुछ देर बाद ही मरने वाले हो।
इतना बोलते हीं बखोटन शत्रु दल के सेनापति का गला काट देता है।
और गड्ढे निकलते हुए चिल्लाकर बोलता है की चलो भाई
लड़ाई ख़त्म ये मोर्चा हमने जित लिया है।
पर बाहर निकलते हीं देखता है की उसके दल के
सभी सैनिक मारे जा चुके हैं ,और शत्रु दल
उसपर हमला करने भागा आ रहा है।
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी........................
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