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शत्रु दलनायक को बखोटन ने मार दिया था और
बखोटन के दल के सभी सैनिक भी मारे जा चुके थे,
बखोटन विडंबना में था ये उसकी हार हुई है या जीत। 😞😔
पर ये समय सोचने का नहीं था लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई थी,
शत्रु दल के सैनिक सामने थे , उसने अपनी ढाल फ़ेंक दी और
दोनों हाथों में तलवार उठा लिया। उसके सामने जो लोग थे उन्होंने
दल के सभी साथियो को मारा था और अब उनके साथ भी यही होने वाला था।
एक - एक करके सारे सैनिक मारे जा रहे थे सवा घंटे और चालीस लाशें ,
खून से सनी हुई मिट्टी और मिट्टी से सने हुए मृत शरीर।
बखोटन अपने लोगो की लाशें बैलगाड़ी में लादकर ले जाने लगा।
उसके मन को बस एक हीं बात कचोटे जा रही थी ,
क्या ये उसकी गलती थी? , 😢😢
बासठ लोग गए थे , इकसठ लाशें लौटी और एक अकेला बखोटन ,
अगर वो अपनी व्यक्तिगत बातों को रणभूमि में न ले जाता तो क्या उसके लोग मारे जाते ?
अगर वो दलनायक न होता तो उसके लोग मारे जाते ?
क्या ये युद्ध न होता तो उसके लोग मरे जाते ?
अगर रौशनगढ पर हमला न होता तो क्या उसके लोग मारे जाते ?
महाराज से जाकर वो क्या कहेगा ?
क्या वो उनको बचा सकता था ?
क्या वो अब रौशनगढ़ के बाकि बचे सैनिको को बचा सकता है ?
बैल , बैलगाड़ी , और लाशो को वो बीच रस्ते में छोड़कर अकेला
शत्रु की सैनिक छावनी की तरफ चल दिया
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