निर्गुण - सत्य
किराए घर पे रहे ना भरोसा
सांवरे काहे करे तू बहाना रे
सैंया पुकारे तोहे अब तो
छोड़ के तुझे तो है जाना रे।
याद कर...काहे को लिए थे जनमवा
काहे खातिर मिले ये तनवा रे
है बेला आई वापस जाने को
रोके ना अब तो रुकाना रे।
माटी का देह ई माटी में मिलना
फिर क्यों मोह में जाए रे
होगा हिसाब साँवरिया के गांव में
लेने पिया तोहके आए रे।
रित यही है, यही सच्चाई
ये कुछ दिन है का बस ठिकाना रे
आए थे राम, मोहन और लखनवा
उनको भी पड़ा फिर से जाना रे।
कहत अमित पहिले ही जागो
खुद को मुरारी में रमाना रे
वो ही पालक वो ही नाशक
उन्हीं का है सारा कारनामा रे।
कर लो काम कुछ नेक ओ भैया
यही जैहे साथे अंतिम समैया
खुद ही सब फिर होई पछताई
छोड़ देंगे सारा ई जमाना रे।
रुपया पैसा कछु ना जाये वहाँ
मोल होई सब फिर अच्छे कर्म के
ना घरवाले ना ही पड़ोसी
हो जाए सब फिर बेगाना रे।
कुछ ना बिगड़ा अभी बहुते समय है
ना समझे तो दुर्गति तय है
मोह जंजाल में फिर काहे आना रे
चलेंगे ना कोई तब बहाना रे।
बेड़ा पार हुए जो जागे
माया बांध जो है लांघे
मोह मुक्ति का इक ही रास्ता
जपो राम-नाम सबसे सस्ता
फिर ये मोह आवे न बुलाने रे।
© Tukbook
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