मोहब्बत की झलकी

वो मां का सगुन मुझे चुपके से देना
वो हाथो से शक्कर और दही खिलाना
वो बाबूजी की छलकती हुई आंखें
वो उनके लबों का चुप ही रह जाना।
वो भाई के नई साइकिल के लिए जिद
वो बहनों का राखी पे फिर से बुलाना
वो छुट्टी के दिनों में की हुई मस्ती
वो अन्दर की कशिश को सबसे छिपाना।
वो दोस्तो की टोली से अन्तिम विदाई
वापसी का उनको दिलासा दिलाना
वो गांव की गलियों का सफर छूटता सा
वो पीपल की छाव का फिर से बुलाना।
वो उमरी हुई सरसो वो गेहूं की बाली
लगे जिनसे रिश्ता हो सदियों पुराना
वो सावन का मौसम वो मिट्टी की खुशबू
वो गांव के मेले में जलेबी का खाना।
वो मामा के गांव की भूली सी यादें
वो नानी का परियो की किस्से सुनाना
वो साइकिल का पहिया , भरी दोपहरी
मोहल्ले के दिन भर फिर चक्कर लगाना।
अरे कहां खो गए, यूं उलझे पड़े हो
बदल तो दिया तूने अपना ठिकाना
अभी तो शुरू हुई है यादों की बारिश
अभी तू ठहर जा अभी तो ना जाना।
ना जाने का मन हो ना लौटा ही जाए
वो तब भी निकलना कर के बहाना।।
© Tukbook
लाजबाब जबरदस्त जिन्दाबाद
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