अब जमाना नहीं की तुमसे कहें...
दुख फ़साना नहीं की उससे कहें
दिल भी माना नहीं
की उससे कहें
आज तक अपनी बेकरारी का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं
की उससे कहें
बेपनाह हाल-ए-दिल है और उससे
अब कोई रिश्ता भी नहीं
की उससे कहें
एक अल्फाज़-ऐ-फ़साना था मगर
अब ज़माना नहीं
की उससे कहें
दर्द-ऐ-एज़ाज़ है हम ! हम फ़क़ीर लोगों का
कोई ठिकाना नहीं
की उससे कहें
अब तो अपना भी उस गली में ’एज़ाज़ '
आना जाना नहीं
की उससे कहें...
अल्फाज़-ऐ-एज़ाज़
© Tukbook
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