मै नहीं कोई और है....

 Tukbook

अब तो खूद से वाकिफ हो जाऊ  "एज़ाज़"
 कि ये मै नहीं कोई और है, कि
मै अपने ख्याल-ऐ-ज़िन्दगी के 
अंदर हूँ, बाहर कोई और है, 

वो जो रास्ते थे, वफ़ा के थे, 
ये जो मन्जिलें है, सजा की हैं
मेरा हमसफ़र कोई और था 
मेरा हमनशीं कोई और है

मेरे जिस्मों जान में 
तेरे सिवा नहीं और कोई दूसरा
मुझे फिर भी लगता है इस तरह
 कि कहीं कहीं कोई और है

मैं गुनहगार अपने मिजाज का,
मैं इन्शान अपने ख्याल का, 
जो अपने प्यार को न पा सका, 
वो बदनशीब कोई और है,

मैं अजब मुसाफिर हूँ "एज़ाज़" 
कि जहां जहां भी गया वहां
मुझे लगा कि ये लोग इन्शान है,
मगर ये इन्शान नहीं कोई और है, 

रहा प्यार से बेखबर, कभी 
इस से  प्यार , कभी उस से प्यार, 
मेरे जी को जिसकी रही ललक, 
वो चेहरे नूर कोई और है

ये जो चार दिन के ज़िन्दगी है, 
इस ज़िन्दगी को "एज़ाज़" कोई क्या कहे, 
वो मोहब्बतें, वो शिकायतें, 
मुझे जिससे थीं, वो कोई और है...
© Tukbook
अल्फाज़-ऐ-एज़ाज़ 

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