खुदा की अमानत हैँ बेटियाँ
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जरा सी बड़ी क्या हुई बेटियाँ,
पहनना, ओढ़ना, कुछ भी बोलना,
बेवक़्त खिड़की खोलना,
पढ़ना लिखना और तो और
बाजार जाना मुश्किल कर बैठे हैं,
बेटियाँ हैं जनाब ये हमसे
ज्यादा समझ रखती हैं
आप बेटियों को क्यों अपने घर के
सजावट के सामान बना बैठे हैं ,
और उन कमीनो को क्या कहोगे एज़ाज़,
जो अपनी बहन को प्यारी और दूसरों की
बहन को माल, पटाका, ...............
बोल बोल कर परेशान कर बैठे हैं ,
प्यार की रूहानी शक्ति को
ये इंसानी शक्ल कुत्ते क्या जाने,
प्यार दो शरीरों का मिलन है,
ये वैहम पाल बैठे हैं ,
और जो भी कुछ है खुदा की रजा से हैं ,
सबके घर में बरकतें भी बेटी की वजह से हैं ,
उसकी मर्जी के बिना
हवा भी नहीं चलता,
यकीन मानो बेटी के बिना
खानदान नहीं चलता,
वो मालिक खुशियाँ इतना दे देंगे
हम-तुम और सब संभाल ना पाओगे
माँ के बाद बेटियों की इज़्ज़त करो
वो तुम्हारी वजह से तुम्हारे खानदान
को भी माफ़ कर जायेंगे,
तुम बेटियों को दुनिया में
आने से पहले मार देते हो,
यकीन मानो जन्नत को टाल देते हो,
अगर बेटी ना हो तो, ना रौनक ना शहर
और ना शहर मे कोई मक्का होगा,
इस धरती पर कुछ नहीं होगा
सिर्फ और सिर्फ कब्रिस्तान होगा....
अल्फाज़-ऐ-एज़ाज़
© Tukbook
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