दिल का बहलना
दिल बहलता है कहाँ
तेरी याद से भी
अब तो हम हो गए बेखबर
तेरे सवाल से भी
रो पड़ा हूँ तो कोई बात
ही ऐसी होगी
मैं तो वाक़िफ़ था तेरे
ख्वाब के ताबीर से भी
कुछ तो मेरी आँखों का भी
भूल है खफ़ा हो जाना
और कुछ भूल हुई है
दिल-ए-बेताब से भी
ऐ दुनिया की हवा तुझे क्या बताएं
प्यास साहिल की,
बुझती नहीं सैलाब से भी
कुछ तो उस हुस्न को
जाने है ज़माना सारा
और कुछ बात चली है
मेरे एहतराम से भी...
अल्फाज़-ऐ-एज़ाज़
© Tukbook
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