हाल-ए-दिल

 

बैठ गए हो एज़ाज़ अपने
 दिल के हालते बयाँ करने, 
पर सच कहूँ "एज़ाज़" तुझको 
न आईं मुहब्बते करने, 

ये मोहब्बत क्या है की 
वो सामने हो और हमें, 
हमारे दिल बेचैन हो कर 
लगे हरकते करने, 

हम फ़रिश्ते नहीं की 
हम गुनाह नहीं कर पाए, 
मेरे सारे सोच लग जाते थे 
उसे ख्याल करने, 

सब लगे हैं अपनी-अपनी 
ज़िन्दगी सवारने मे,  
और मै बैठा हूँ अपने 
दिल की हालते बया करने,

वो अपने दिल से थी मजबूर, 
और हम लग जाते थे झगड़ा करने, 
पहली बार मै जब मिला था उससे, 
तो चाहा था गुफ्तगू करना,

फिर अपने आप से लगा सौ-सौ सवाले करने, 
थी वो प्यारी जो मेरे कभी ख्याल से नहीं जाती, 
मुझी को समझ ना आई  मुहब्बत करने, 

"एज़ाज़" कभी कभी नये मौसमों में रो देना, 
क्यों बैठ जाते हो पुरानी बात को तलाश करने, 
© Tukbook
अल्फाज़-ऐ-एज़ाज़ 

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