सब्र का बांध

सब्र का बांध



 सालों से अटल था ये अटूट था,
पहाड़ जैसा स्थिर ये मजबूत था ।
संकटों का बाढ़ मेरे काबू से,
 कहीं छूट न जाये।
मेरे सब्र का ये बांध कहीं टूट ना जाये

विकट की इस घड़ी को न-जाने,
कब तक टाल पाएंगे।
अपरिहार्य है ये होना ,
अब और रोक ना पाएंगे।
विलुप्त शांत ज्वालामुखी ये,
बुलबुला के कहीं फुट न जाये।
मेरे सब्र का ये बांध कहीं टूट न जाये।

क्रोध के पूरे प्याले को 
मैं घूँट-घूँट कर गटक गया।
पर क्रोध मेरा कोई तरल न था
वो जाकर गले में अटक गया।

विलुप्तप्राय है धैर्य मेरा,
बचा-खुचा कोई लूट न जाये
मेरे सब्र का ये बांध कहीं टूट न जाये।
© Tukbook

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