दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाले,
वही अन्दाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाले,
अब उसे लोग समझते हैं इतिहास मेरा
नासमझ हैं लोग मेरा इतिहास बताने वाले
रात का ख्वाब सुबह दम तोड़ जाता है
कितने ज़ालिम है मेरे ख्वाब को तोड़ने वाले,
क्या कहें कितने प्यार था मुझे उससे
पर वो पत्थर दिल मुँह फेर के जाने वाले,
पर ना जाने क्या खूबियां थी उसमे
उसके होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाले,
मुंतज़िर किसका हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आयेगा यहाँ कौन है आने वाले,
मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाले,
क्या ख़बर है उसकी जो मेरी जान में घुली थी,
थी वही लड़की मुझ को मुझ से मिलाने वाली,
तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो "एज़ाज़"
हर दोस्त होते नहीं साथ निभाने वाले,
अल्फाज़-ऐ-एज़ाज़
Tukbook
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