माँ...

 Tukbook


बुलंदी देर तक नहीं किसी

 शख्श के हिस्से में रहती है, 

बहुत ऊँची इमारत 

हर घड़ी खतरे में रहती है, 


ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं 

अदा कर ही नहीं सकता,

मैं जब तक घर न लौटूं, 

मेरी माँ मेरी ताक में रहती है, 


जी तो बहुत चाहता है 

इस कैद-ए-जान से निकल जाएँ हम

मगर मेरी माँ की दुआओं का असर 

मेरे साथ हर वक़्त रहता है,


मै तो अपनी दुनियां मे मग्न रहता हूँ,

पर मेरी माँ की आँखे 

मेरी ख़ुशी की खोज मे रहती है, 


मैं इंसान हूँ बहक जाना 

मेरी फितरत में शामिल है, 

माँ के दुआओं के कारण ही, हवा भी 

मुझे छूकर देर तक नशे में रहती है,


मोहब्बत में परखने जांचने से फायदा क्या है

कमी थोड़ी-बहुत हर एक के घर में रहती है, 


ये अपने आप को तकसीम (बाँट) कर 

लेते है जमीनों जायदादों में , 

खराबी बस यही, हर घर के नक़्शे में रहती है।  

© Tukbook

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