बखोटन (भाग -3 )


रात हो चुकी थी , आक्रमणकारियों ने राज्य की सीमा के बहार अपना पड़ाव

डाला था।  उनका राजा अपने कक्ष में रात्रिभोज पर बैठ गया था।  तभी

रसद कक्ष की तरफ से कोलाहल उठा, सभी जोर-जोर से चिल्ला रहे थे

“आग लगी है”। राजा ने अपने द्वार-पाल तथा अंगरक्षको को आग बुझाने मे

मदद करने के लिए भेज दिया । 

और सर नीचे कर थाली में देख कर भोजन करने लगा। 


तभी कक्ष में किसी के आने की आहात हुई , उसने सर उठा कर देखना चाहा

तभी किसी ने उसके गर्दन पर तलवार रख दिया। 

वो बखोटन हीं था , ये आग भी उसी ने लगाई थी। 

 बखोटन ने बोलना शुरू किया ,

 तुमने मेरे राज्य पर हमला किया , मेरे लोग मारे गए और मैंने तुम्हारे लोगों

को मार दिया।  उनकी लाशें अभी भी रणभूमि में ही पड़ी हैं।  तुम्हारे पास मौका

है , लाशें उठाओ , उनका दाह संस्कार करो , और भोर होने से पहले अपने

राज्य लौट जाओ। 


शत्रु सम्राट हँसने लगा , और उसने कहा,

देखो युवक मुझे तुम्हारा  परिचय ज्ञात नहीं है , किन्तु यह साधारण युद्ध नहीं ,

प्रतिशोध है। हमारी सेना तभी लौटेगी जब तुम्हारा राजा मृत्यु को प्राप्त होगा

और तुम्हारा राज्य रौशनगढ़ , भीष्मपुर के अधीन……………..अ ………..अ


बखोटन का तलवार शत्रु सम्राट के गर्दन के आर पार जा चूका था।

और बखोटन धीरे धीरे तलवार रेतते हुए बाई तरफ ले जा रहा था। 

शत्रु सम्राट मर चूका था ,उसका  सर आधी गर्दन के सहारे लटकता हुआ

छोड़ कर बखोटन जाने लगा तभी उसके मन में कुछ आया और उसने बचा

हुआ आधा गर्दन भी काट लिया और उसका सर लेकर चला गया। 


बखोटन राजमहल में पहुँचा, राजा ने तत्काल उसी रात्रि में राज्य सभा बुलाया

और तत्कालीन सेनापति को पद से बर्खास्त करते हुए बखोटन को नया

सेनापति घोषित किया।  फिर राजा ने कहा ,

अगर मेरे फैसले से किसी को कोई आपत्ति न हो तो कल सुबह मोर्चे पर जाने

से पहले बखोटन का शपथ ग्रहण होगा। 


बखोटन ने खड़े होकर कहा ,

महाराज ! मुझे आपत्ति है।



कहानी अगले भाग में जारी रहेगी


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